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राज व्यवस्था में भ्रष्टाचार

अजय दीक्षित
भारतीय शासन व्यवस्था ऐसी बन गई है कि हम भ्रष्टाचार रहित जीवन की कल्पना भी नहीं कर पाते । जीवन के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार है, रोज़मर्रा के हर काम में भ्रष्टाचार हैं। लाइन तोडऩे से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार पसरा हुआ है। कई बार लगता है मानो भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं रहा। नेता भ्रष्ट हैं, अधिकारी भ्रष्ट हैं, व्यापारी भ्रष्ट हैं, जनता भ्रष्ट है। हमारी रग-रग में भ्रष्टाचार भर गया है। जब सभी भ्रष्ट हैं तो इसे जीवन का हिस्सा मानकर स्वीकार कर लिया गया है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर किसी भ्रष्ट सरकारी अधिकारी से लडना आ बैल मुझे मार जैसा है, अत: हम लोग चुपचाप रिश्वत देकर काम करवाना ही ठीक समझते हैं, वरना यह लगभग पक्का है कि उस भ्रष्ट अधिकारी का कुछ बिगड़े या न बिगड़े, पर हमारा काम जरूर अटक जाएगा।

भ्रष्टाचार की मकबूलियत इस हद तक की है कि आज से लगभग आधी सदी पहले भी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हमारा भारत महान का नारा दिया था तो समाज में प्रचलित चुटकुलों में 99 प्रतिशत बेईमान, फिर भी मेरा देश महान शामिल हो गया। हम लोग इन चुटकुलों को पढ़ते थे, हंसते थे और भुला देते थे। हमारा देश गरीब लोगों का अमीर देश है। यहां प्राकृतिक संसाधनों और खनिज पदार्थों की भरमार है, लेकिन लोग गरीब हैं, गरीबों और अमीरों के बीच की खाई उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। गरीबी से सताया हुआ व्यक्ति इतना विवश हो जाता है कि वह अक्सर अपना अपमान भी चुपचाप सह लेता है। इससे उसका आत्मविश्वास जाता रहता है और समाज में उसका योगदान घटने लगता है। भ्रष्टाचार पर काबू पाने के उपायों के संबंध में लोगों की राय अलग-अलग है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि पहले हमें बदलना होगा, तभी कोई सुधार संभव है। दूसरी ओर प्रशासनिक सुधारों से जुड़े रहे अनुभवी लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार पर काबू पाने का एक ही तरीका है कि सिस्टम में सुधार किया जाये ।

हमारे देश में महापुरुषों की कमी कभी नहीं रही, हम स्वभाव से आदर्शवादी हैं, फिर भी यदि समाज में नैतिक गिरावट बढ़ती जा रही है तो इसका कारण यही है कि भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए कोई मजबूत सिस्टम उपलब्ध नहीं है। इसका प्रमाण यह है कि विदेशों में बसे भारतीय सफल भी हैं। और नैतिक तथा सामाजिक रूप से जिम्मेदार भी। यदि सचमुच भारतीय होने के कारण हम बेईमान होते तो फिर विदेशों में बसे 7 भारतीय भी बेईमान ही होते। विभिन्न अध्ययनों से सिद्ध होता है 7 कि देश का सिस्टम कैसा भी हो, लगभग 10 प्रतिशत लोग ईमानदार होते ही हैं, और कुछ भी कर लें तो भी 10 प्रतिशत के लगभग लोग बेईमानी से बाज नहीं आते, जबकि 80 प्रतिशत लोग समाज की स्थितियों के अनुसार ढल जाते हैं।

यदि सिस्टम मजबूत हो, बेईमानी पर तुरंत सजा होती हो, तो ये लोग बेईमानी की कोशिश नहीं करते, लेकिन यदि वे यह देखें कि बेईमानी करने वाला फल-फूल रहा है, उसे कोई सजा नहीं मिल रही, बल्कि वह जीवन का ज्यादा आनंद ले रहा है तो ये 80 प्रतिशत लोग भी बेईमानी पर उतर आते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि भ्रष्टाचार पर रोकथाम के लिए सिस्टम को मजबूत बनाना आवश्यक है। हमारे समाज की अवनति का कारण ही यह है कि हमारे देश में सत्तारूढ़ लोगों ने अपने निहित स्वार्थों की खातिर सिस्टम को मजबूत बनाने के बजाय या तो सिस्टम बनाया ही। नहीं, या फिर जानबूझकर उनमें खामियां छोड़ दीं। हमारे देश की चुनाव प्रक्रिया ही ऐसी है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। हमारे देश में अक्सर 60-70 प्रतिशत मतदान होता है, यानी चुनी गई, सरकार को 30 प्रतिशत जनता ने वोट नहीं दिया । जिन लोगों ने मतदान किया उनमें से भी बहुत से लोग विपक्षी अथवा स्वतंत्र उम्मीदवारों को वोट देते हैं । कोई भी 50त्न से आज तक नहीं जीता है ।

चुनाव जीतना ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, इसलिए उम्मीदवार जीत सुनिश्चित करने के लिये हर तरह के जायज़ और नाजायज़ तरीके अपनाते हैं ।  स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए शुरुआत हमें जड़ से करनी होगी ।

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