Breaking News
प्रदेश में औषधीय गुणों से भरपूर शहद के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है – मुख्यमंत्री धामी 
मुख्य सचिव ने बीएसएनएल को 4जी सेचुरेशन स्कीम का कार्य समयसीमा पर पूर्ण करने के दिए निर्देश
मैं देशवासियों को नमन करता हूं जिनकी वजह से महाकुंभ का सफल आयोजन हुआ – पीएम मोदी 
मुख्यमंत्री धामी ने कलस्टर विद्यालयों में परिवहन सुविधा के लिए 15 बसों का किया फ्लैग ऑफ
अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को लेकर स्पेसएक्स का कैप्सूल धरती के लिए हुआ रवाना
क्या आपको भी रहती है भूख न लगने की समस्या, तो इन योगासनों का करें अभ्यास, मिलेगा फायदा 
उत्तराखंड की धामी सरकार की तबादला एक्सप्रेस ने फिर पकड़ी रफ्तार
महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर हुई हिंसा, कई इलाकों में अनिश्चितकाल के लिए लगाया कर्फ्यू
सरकारी अधिसूचनाओं में विक्रम संवत एवं हिन्दू माह का होगा उल्लेख- मुख्यमंत्री धामी

मुद्दा रुपये की ताकत का

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने गोवा आए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने रुपया-रुबल में कारोबार के बारे में जो टिप्पणी की, उससे भारतीय बौद्धिक वर्ग का एक बड़ा हिस्सा आहत है। लावरोव ने यह टिप्पणी विदेशी मीडिया में आई एक खबर के बारे में पूछे जाने पर की। खबर यह है कि रूस ने भारतीय आयात का रुपये में भुगतान को लेकर चल रही बातचीत रोक दी है। इस बारे में सवाल पर लावरोव ने कहा कि भारतीय बैंकों में पहले ही रूस का काफी रुपया जमा हो चुका है। उसका कोई उपयोग उसे नहीं सूझ रहा है। इसलिए यह समस्या वास्तविक है। साथ ही उन्होंने जोड़ा कि इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत चल रही है। इस कथन से भारतवासियों की आहत हुई राष्ट्रीय भावना के सवाल को एक अगर थोड़ी देर के लिए भूल जाएं, तो यह प्रश्न उठेगा कि लावरोव ने जो कहा क्या वह बात सिरे से निराधार है? इस सिलसिले में इस बात का अवश्य उल्लेख होना चाहिए कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत सरकार ने रुपये को वैश्विक रिजर्व करेंसी बनाने की महत्त्वाकांक्षा में अपनी ताकत झोंक रखी है।

अनेक देशों के साथ रुपये में भुगतान के लिए करार हुआ है और उसका सिस्टम भी बन गया है। लेकिन असल में भुगतान हो नहीं रहा है। कारण बहुत स्पष्ट है। रुपया सिर्फ उन देशों को स्वीकार्य हो सकता है, जिनका भारत से आयात ज्यादा निर्यात कम है। जो देश भारत को अधिक निर्यात करते हैं, उनके सामने एक सीमित मात्रा के बाद रुपये की उपयोगिता का प्रश्न उठ खड़ा होगा। जिस देश का कुल अंतरराष्ट्रीय कारोबार में हिस्सा सिर्फ दो प्रतिशत हो और अधिकांश देशों के साथ कारोबार घाटे में हो, उसके अपनी मुद्रा को ग्लोबल रिजर्व करेंसी बनाना बहुत बड़ी चुनौती है। इसलिए भारतवासियों को लावरोव की टिप्पणी से आहत होने के बजाय इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था कैसे इतनी मजबूत बने, जिससे रुपये के प्रति दुनिया का सहज आकर्षण बन जाए। अपनी शक्ति से ज्यादा महत्त्वाकांक्षा जोखिमभरी होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top