केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू को न्यायपालिका से जुबानी जंग की कीमत चुकानी पड़ी। न्यायपालिका और कॉलेजियम सिस्टम पर आक्रामक रुख अख्तियार करने वाले रिजिजू के चलते सरकार भी असहज थी । इससे पहले कोई भी राजनेता या मंत्री न्यायपालिका को लेकर इतना तल्ख नहीं रहा। किरण को फिलहाल पृथ्वी विज्ञान मंत्री बनाया गया है और उनकी जगह अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। कानून मंत्री का पदभार संभालने के बाद मेघवाल का बयान कि ‘न्यायपालिका और सरकार में कोई मतभेद नहीं है, बल्कि दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध हैं । संविधान में सवकी अपनी सीमाएं हैं और उसी के हिसाब से काम होता है।’
अशय साफ है कि सरकार और न्यायपालिका के बीच रिश्तों में कसैलापन था। रिजिजू जिस तरह बिना लाग-लपेट के कॉलेजियम सिस्टम की बखिया उधेड़ते रहे, उससे एक बात तो साफ दूरियां दिखती थी। कभी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को ‘अंकल जज सिंड्रोम’ करार देना हो या ‘कुछ जज भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा’ ऐसे बयानों को कानून मंत्री के तौर पर किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
हां, लम्बित मामलों पर कार्य करने के तौर-तरीकों को बदलने की जगह बेवजह के विवादित बयानों का सहारा लिया जाएगा तो हालात और ज्यादा खराव ही होंगे। इस बात को लगता है सरकार ने समझा; तभी उन्हें इस पद से हटाया भी गया । इस वदलाव में एक खास बात यह रही कि मेघवाल जिस राज्य राजस्थान से आते हैं वहां इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व को लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में मतभिन्नता रही है। मेघवाल को अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी देकर पार्टी राज्य में एक संदेश दिया है। चूंकि मेघवाल दलित समुदाय से आते हैं तो नि:संदेह राज्य में इस तबके के वोटरों को अपने पक्ष में करने में उन्हें आसानी होगी।
बहरहाल, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के आखिरी साल में कुछ महत्त्वपूर्ण विधेयक आ सकते हैं। लिहाजा, ऐसे मंत्री की जरूरत होगी जो सबको साथ मिलाकर चल सके और सरकार के काम को सहजता से पूरा कर सके। मेघवाल इस मामले में सर्वोत्तम चयन हो सकते हैं क्योंकि उनका भारतीय प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर लम्बा अनुभव रहा है। देखना है, इस फेरभदल के बाद न्यायपालिका के साथ सरकार के संबंध कैसे रहते हैं ।