नैनीताल। उत्तराखंड में चौतरफा भूस्खलन व एकाएक तेज बारिश से नैनीताल शहर के करीब 27 हजार लोग खतरे के साये में हैं। पिछले पांच-सात सालों में नैनीताल-मसूरी में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से थोड़े समय में अधिक वर्षा होना है। नैनीताल के बलियानाला, नयना पीक, राजभवन के गोल्फ कोर्स क्षेत्र में भूस्खलन की आशंका बढ़ रही है। अब यहां टिकाऊ विकास बेहद जरूरी है। वाडिया इंस्टीट्यूट की अध्ययन रिपोर्ट के बाद अब डीपीआर बनाने की दिशा में सरकार बढ़ रही है।
जलवायु परिवर्तन पर हिमालय क्षेत्र में काम कर रहे ईसी मोड नेपाल के महानिदेशक पेमा ज्यामस्थो का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र के शहरों में अब परंपरागत तकनीक आधारित निर्माण होना चाहिए। स्थानीय सामग्री का उपयोग निर्माण में बढ़ाया जाना चाहिए। पर्वतीय शहरों में कंक्रीट निर्माण से परहेज जरूरी व समय की मांग भी है। नैनीताल में संकरी रोड हैं, जो कभी कभार पर्यटकों के लिए खतरा बनती हैं। ऐसे में तकनीकी आधारित यातायात प्रबंधन सिस्टम लागू किया जा सकता है। नेपाल के साथ ही भूटान में भारत के पर्वतीय इलाकों गुड प्रेक्टिसेज को लागू किया जा सकता है।
भार वहन क्षमता को बहस का मुद्दा बताते हुए कहा कि पर्वतीय इलाकों में पर्यटन सीजनल होता है, आफ सीजन में शहर खाली हो जाते हैं। केदारनाथ में तीर्थयात्रियों भीड़ प्रबंधन के लिए डिजिटल सिस्टम लागू किया जा सकता है। दुनिया में खाद्य सुरक्षा पर बात होनी चाहिए। पहाड़ों में बंजर भूमि का दायरा लगातार बढ़ना बेहद चिंताजनक है। सरकारों को परंपरागत फसलों के उत्पादन पर फोकस करना चाहिए।