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एआई से चिंतित दुनिया

घूम-फिर कर सवाल यही आएगा कि क्या ऐसे कानूनों से वह चिंता दूर होगी, जिसके लिए ये सारी कवायद की जा रही है? अक्सर किसी नई तकनीक और उसके प्रभाव को रोकने में कानून अक्षम साबित होते हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने अपनी अमेरिका यात्रा की इसे एक बड़ी कामयाबी बताया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने उनकी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) संबंधी योजना को स्वीकार कर लिया। पिछले हफ्ते जब ह्वाइट हाउस में दोनों नेता मिले, तो सुनक ने बाइडेन के सामने प्रस्ताव रखा कि ब्रिटेन एआई के विनियम का केंद्र बनना चाहता है।

बाइडेन इस पर सहमत हो गए। जब दो विश्व नेता किसी ऐसे एजेंडे पर सहमत हो, तो यह समझा जा सकता है कि संबंधित मुद्दा दुनिया में किस तरह चिंता का विषय हुआ है। दरअसल, ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के कई देशों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर सख्त और कड़े कानून बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। इन कानूनों के तहत दिखने में असली लेकिन फर्जी सामग्री बनाने वाली तकनीकों पर प्रतिबंध लगाना भी संभव है। मगर घूम-फिर कर सवाल यही आएगा कि क्या ऐसे कानूनों से वह चिंता दूर होगी, जिसके लिए ये सारी कवायद की जा रही है? अक्सर किसी नई तकनीक और उसके प्रभाव को रोकने में कानून अक्षम साबित होते हैं।

बहरहाल, यह सच है कि इस समय दुनिया भर में एआई को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं। तकनीक की दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग- मसलन ट्विटर के मालिक इलॉन मस्क और गूगल के सीईओ तक एआई को लेकर चेतावनी दे चुके हैं। ऐसे में उचित ही है कि सरकारें भी इस बात पर विचार करें कि कैसे एआई के दुष्प्रभावों से लोगों को बचाया जाए। पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय साइंस और तकनीक परिषद ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि एआई से तैयार सामग्री कई तरह से नुकसानदायक हो सकती है। मसलन, अगर किसी देश की संसदीय समिति किसी विषय पर जनता से राय मांगती हैं, तो तो एआई के जरिये जनता की फर्जी राय दर्ज कराई जा सकती है, जिससे यह संकेत जाएगा कि कि जनता की राय एक खास पक्ष में है। फिर कॉपीराइट, प्राइवेसी और उपभोक्ता सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बनाए गए कानून एआई के नए दौर में नाकाफी हो गए हैं। इसलिए अगर सरकारें नया कानूनी ढांचा बनाना चाहती हैं, यह पहल सही दिशा में मानी जाएगी।

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