हरिशंकर व्यास
हां, पहले जरा दिसंबर 2022 के गुजरात-हिमाचल चुनाव के माहौल को याद करें। फिर उसके बाद से कर्नाटक चुनाव के मौजूदा माहौल पर गौर करें तो क्या लगेगा नहीं कि राजनीति भारी बदल गई है। क्या लगता नहीं कि भारत सन् 2023 में भीषण सियासी गर्मी में झुलसेगा। हार-जीत के सिनेरियो को एक-तरफ करें और कर्नाटक पर सोचें! नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ या भाजपा का कैंपेन कैसा है? पूरी तरह रक्षात्मक है। नरेंद्र मोदी अपने जादू पर भरोसा करने की बजाय बूथ कार्यकर्ताओं से अपील कर रहे हैं। हिमाचल में भाजपा के टिकट कटे नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था।वही कर्नाटक में भाजपा के दिग्गज नेताओं ने कांग्रेस में शामिल हो कर कांग्रेस का टिकट लिया है। प्रदेश में भाजपा ने हिजाब, हलाल, टीपू सुल्तान जैसे जो मुद्दे पकाए थे, उन्हें वह छोड़ चुकी है। या तो वह यह कह रही है कि कांग्रेस जीती तो दंगे होंगेया मुस्लिम आरक्षण पर बात कर रही है।
पहली बार भाजपा हर तरह से भ्रष्टाचारों के आरोपों में घिरी है। प्रदेश में ‘40 प्रतिशत कमीशन सरकार’ का जुमला ऐसा चला है कि भाजपा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई पत्रकार पूछे उससे पहले ही पत्रकार के आगे ‘40 प्रतिशत’ पर सफाई देने लगते हैं। अदानी और 40 प्रतिशत कमीशन की चर्चाओं में न तो भाजपा सबका साथ, सबका विकास का हल्ला बना पा रही है और न नरेंद्र मोदी अपनी जादू के आत्मविश्वास में सघन प्रचार कर रहे हैं जैसे दिसंबर में हिमाचल-गुजरात में किया था। मतलब कर्नाटक में भाजपा इस समस्या से जूझ रही है कि बोलें तो क्या बोलें! ठीक विपरीत कांग्रेस, राहुल गांधी, प्रियंका, शिवकुमार, सिद्धारमैया, खडग़े दबा कर बोल रहे हैं। सभी ऐसे एक्टिव हैं, जैसे किसी बात का कोई डर नहीं, कोई चिंता नहीं।
सोचें, जनवरी 2023 से नरेंद्र मोदी, अमित शाह, भाजपा सरकार ने राहुल गांधी, कांग्रेस, आप, विपक्ष को डराने, चोर, भ्रष्ट बतलाने के लिए क्या-क्या नहीं किया!राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म की। दिल्ली में उनको बेघर बनाया। मनीष सिसोदिया को जेल में डाला। अरविंद केजरीवाल, चंद्रशेखर राव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी याकि विपक्षी नेताओं और परिवारों पर तरह-तरह की तलवारें लटकाईं। मगर इस सबके बावजूद राहुल गांधी ने कर्नाटक में बिना अदानी-नरेंद्र मोदी पर फोकस किए ‘40 प्रतिशत कमीशन सरकार’ के प्रादेशिक जुमले का जबरदस्त हल्ला बनवा डाला है।
तो जनवरी 2023 के बाद बदली राजनीति में पहली नई बात यह है कि भाजपा पर भ्रष्टाचार का आरोप चिपका है। अखिल भारतीय स्तर पर अदानी और नरेंद्र मोदी पर राहुल गांधी ने, कांग्रेस ने संसद और सडक़ पर जो महाअभियान चलाया तो उससे अब प्रदेश-जमीनी स्तर पर भी लोग भाजपाई मुख्यमंत्रियों, नेताओं, सरकारों के भ्रष्टाचार को दिल-दिमाग में पैठाते हुए हैं। मोदी-शाह ने अरविंद केजरीवाल सहित तमाम विपक्षी नेताओं को जितना बदनाम किया उससे अधिक अनुपात में अदानी के स्थायी फैक्टर से लोग अपने आप ‘40 प्रतिशत कमीशन सरकार’, को महंगाई जैसे आर्थिक मुद्दों का मिक्स कर भाजपा को विलेन बूझने लगे हैं। यदि कर्नाटक में भाजपा विधानसभा की 224 सीटों में से 70-80 सीटों पर अटकी और कांग्रेस को यदि अकेले बहुमत मिल गया तो साफ जाहिर होगा कि गैर-भक्त वोटों में भ्रष्टाचार और महंगाई जैसी तकलीफों का कॉकटेल मिक्स अब धर्म और जात राजनीति जितना ही दमदार बन रहा है।
दूसरी बात, चार महीने में मोदी सरकार ने विपक्ष को मारने कि जितने चाबुक चलाए उतना ही अब सभी विरोधी नेताओं में मन ही मन आर-पार की सियासी लड़ाई का संकल्प बना है। दिसंबर 2022 में अरविंद केजरीवाल, चंद्रशेखर राव, गांधी परिवार, स्टालिन, नीतीश-तेजस्वी, ममता, अखिलेश जो सोचते थे, उससे वे बहुत अलग अब 2024 का मन ही मन संकल्प बनाते हुए हैं।
तीसरी बात, विपक्ष में मंडल-जात राजनीति का कार्ड सर्वमान्य बना है। कर्नाटक में राहुल गांधी ने नीतीश कुमार के सूत्र में जातीय जनगणना की जो बात कही वह आगे विस्फोटक रूप लेगी। नरेंद्र मोदी अपने को कितना ही पिछड़ा बताएं, उनके लिएआगे दक्षिण में स्टालिन के सामाजिक न्याय से लेकर उत्तर भारत में नीतीश-तेजस्वी-अखिलेश-कांग्रेस की साझा मंडल राजनीति को पंक्चर करना आसान नहीं होगा।
चौथी बात, राहुल गांधी और कांग्रेस ने कर्नाटक में जनता को रेवडिय़ां बांटने की जितनी तरह की जो-जो घोषणाएं की हैं वह हिमाचल प्रदेश की घोषणाओं का महारूप है। हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल कर दी है। बाकी घोषणाओं पर अमल का खाका बन रहा है। कर्नाटक में काग्रेस ने रोजगार, बिजली, पानी, किसानों, महिलाओं और गरीबों को सीधे आर्थिक मदद के साथ तटीय इलाकों याकि क्षेत्रवार वादे भी किए हैं। प्रियंका गांधी वारा ने महिलाओं के लिए अलग घोषणापत्र बनाने की बात करके पार्टी की यह रणनीति बतलाई है कि गरीब, महिला, मुस्लिम और दलित पर कांग्रेस लोकसभा चुनाव तक नई रणनीति बनाएगी तो सहयोगियों के साथ मंडल राजनीति का कार्ड भी चलेगी।
क्या यह सब 2024 के आम चुनाव की जमीन की तैयारी नहीं है?
क्या इसे नरेंद्र मोदी-अमित शाह बूझते हुए नहीं होंगे? बिल्कुल हैं। तब कर्नाटक में भाजपा क्या कर रही है? वह मोटा-मोटी बूथ स्तर पर बनाई अपनी वोट प्रोडक्शन असेंबली लाइन को धर्म तथा पैसे सेग्रीस करते हुए है। यह उसका पुराना और स्थायी नुस्खा है। हिमाचल और गुजरात के चुनाव में भी था। हर बूथ पर कौन हमारा है और कौन सा विरोधी की एक-एक वोट गिनती पर और प्रति वोट के प्रबंधन, येन-केन-प्रकारेण अपने ज्यादा वोट डलवाने की भाजपा कारीगरी 2017 के यूपी चुनाव से काम करती हुई है। उस नाते कर्नाटक में भी भाजपा को जीतना चाहिए। मेरा मानना है इस पहलू पर कांग्रेस कर्नाटक में लापरवाह होगी। बावजूद इसके यह तो जाहिर है कि हिमाचल के बाद से अब तक के चार महीने में भारत की राजनीति बहुत बदली है। एक निचोड़ यह है कि विपक्ष को खत्म करने का मोदी महाअभियान उलटा पड़ता, बैकफायर होता हुआ है।